Well-known Kankrej Cows Shepherd of Kutch Gujarat
As we strolled around Patan enjoying the light drizzle, we came across large herds of cows and buffaloes tended to by cheerful and strapping young herdsmen. Gujarat is home to many pastoral communities and boasts of its own breeds of cows and buffaloes. The most famous breed is the Gir cow known for the quality of its milk. In the Rann of Kutch area, the Kankrej breed that we encountered during our walk is quite popular. Kankrej is a hardy milk and draught breed that is found in many parts of Northern Gujarat and Rajasthan. In Gujarat, Kankrej is the preferred breed in Mehsana, Kutch, Patan, Ahmedabad, Kheda, Anand, Sabarkantha, and Banaskantha. In Rajasthan, Jodhpur, and Barmer areas favour this breed. Kankrej is also known as Bannai, Talabda, Nagar, Vagadhiya, Wadad, Waghed. In the 1870s, this breed was introduced into Brazil, where it is known as Guzera. Kankrej is a breed of Zebuine or humped cattle, that originates in India. Its coat comes in a range of greys from silver to black, with males being darker than females. Kankrej sports beautiful curved horns. The hump is well developed and it has a broad forehead with a slight indentation in the center. The face is short and upturned. Kankrej has large, hanging ears. Kankrej is both a milch and draught animal. The milk yield is good and a cow, on average, gives 1730 to 1800 kgs of yield in lactation. Some cows can even give up to 4900 kgs of milk. Bullocks are used for agriculture. What makes Kankrej the preferred breed in this arid region is its ability to withstand heat and for its resistance to tick fever and tuberculosis. The local herdsmen also keep buffaloes. The preferred breeds here are the local Jaffrabadi buffalo and the Murrah which is found in Northwestern states of Punjab and Haryana. The murrah breed is known for its impressive yield of high-fat content milk. No wonder, the young herdsmen glowed with health and vitality. They were happy to share their knowledge of cattle rearing with us.
हम लोग पाटन व आसपास के क्षेत्र में बारिश का आनन्द लेते हुए घूम रहे थे तभी रास्ते में हमें बड़ी मात्रा में गाय व भैंसों के रेवड़ मिले।गुजरात गाय भैंसों के पालन का बहुत बड़ा केन्द्र है यहॉं की मशहूर कांकरेज नस्ल की गायों को “वडाड” या “वेज्ड”, “वागड़िया”, “तालबदा”, “नगर”, “बोनई” के नाम से भी जाना जाता है। इसका नाम गुजरात के बनासकांठा जिले के भौगोलिक क्षेत्र यानी कांकरेज तालुका के नाम पर पड़ा है। वे गुजरात के मेहसाणा, कच्छ, अहमदाबाद, खेड़ा, आणंद, साबरकांठा और बनासकांठा जिलों और राजस्थान के बाड़मेर और जोधपुर जिलों सहित कच्छ के रण के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में पाए जाते हैं। ब्राजील में गुजरात के नाम से मशहूर कांकरेज को उस देश में बड़ी संख्या में शुद्ध नस्ल के रूप में रखा जा रहा है।
सुन्दर चंद्राकार सींग व अच्छी काठी जैसी अनूठी विशेषताओं ने कांकरेज को विदेशों में बहुत लोकप्रिय बना दिया। जानवर के कोट का रंग सिल्वर ग्रे से आयरन ग्रे और स्टील ब्लैक में भिन्न होता है। गायों और बैलों की तुलना में बैल का रंग गहरा होता है। नर में कूबड़ अच्छी तरह से विकसित होती है ।माथा चौड़ा और बीच में थोड़ा फैला हुआ होता है। चेहरा छोटा और नाक थोड़ा ऊपर उठा हुआ होता है। इस नस्ल की अनूठी विशेषता इसके बड़े, लटके हुए कान हैं। सींग लिरे के आकार के चंद्राकार होते हैं। गायें अच्छी दूध देने वाली होती हैं और बैलों का उपयोग कृषि कार्यों में किया जाता है। एक दुग्ध काल में गाय औसतन 1738 किलो ग्राम और अधिकतम 1800 किलो दूध देती है। चयनित गायों ने ग्रामीण परिस्थितियों में लगभग 4900 किलोग्राम उत्पादन किया है।
साथ ही कुछ पालक चरवाहे अच्छी नस्ल की भैंसों का भी पालन करते है ये गुजरात की मशहूर नस्लें हे जाफराबादी व मुर्रा नस्ल की भैंस
तंदरूस्त व बहुत अच्छी मात्रा में दूध देती है।
इन गाय भैंसों का चरवाहा सीधे स्वस्थ स्वभाव वाले कानों में कुंडल व हाथ में चॉंदी का कड़ा व ऊँची काठी वाले हँसमुख चरवाहे होते है हमें इनसे मिलकर व जानकारी ले कर बहुत अच्छा लगा।