Sidhnath Shiva Temple, Jodhpur, Darshan On Sawan Ka Somwar
The Hills surrounding the serene Takhat Sagar is home to the famous Siddhanath Mahadev temple. Just 06 kilometers outside of Jodhpur, the temple attracts devotees, especially during the Monsoon season.
Takhat Sagar was built by Maharaj Takhat Singh of Jodhpur around the 1870s. When Mahayogi Narayan Swami visited Jodhpur Eknath Ranade in 1932, He visited the Siddhanath Temple. In those days, this used to be a small shrine with an adjacent cave. There were some steps to reach the shrine. The path to the temple begins as a dirt track on the right side of the Filter House of Jodhpur. There are 288 stone steps carved out of the rock that lead the devotees to the temple. This ancient temple was a place of perfect solitude once. That is why Narayan Swamy made it his place of meditation. Later, another saint, Gaurishankar, too made this his abode. He had only four fingers and was known as Nepali Baba among the local population. It was during Saint Gaurishankar’s time that he constructed a new temple. It is said that Gaurishankar himself carved stones to create this temple.
During monsoon, on Mondays, devotees trek up the hill to worship at Siddhanath Temple. The view from the top of the hill takes in the Takhat Sagar lake and Jodhpur is mesmerizing.
तखत सागर की पहाडिय़ों में स्थित दादा दरबार सिद्धनाथ महादेव मंदिर जोधपुर शहरवासियों का प्रमुख आस्था स्थल है । परम योगी संत नारायण स्वामी 1932 में संत एकनाथ रानाडे के साथ जब जोधपुर पधारे तब सिद्धनाथ पहाडि़यों में छोटा सा महादेव मंदिर और पास में ही एक गुफा के दर्शन हुआ करते थे … मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढिय़ां बनी है। शिव मंदिर तखत सागर की पहाड़ियों के बीच स्थित है। मंदिर मार्ग एक कच्चे रास्ते से शुरू होता है जो जोधपुर के फिल्टर हाउस के दाईं ओर से जाता है। इसके बाद इस मंदिर तक पहुंचने के लिये 288 पत्थर की सीढ़ियाँ हैं जिन्हें चट्टानों को काटकर बनाया गया है। इस मंदिर का इतिहास प्राचीन काल का है जब जगह पूरी तरह से सुनसान था। बिल्कुल शांत जगह के कारण, वीतराग नारायण स्वामी नाम के एक साधु जो आस – पास के क्षेत्र में अत्यधिक सम्मानित संत थे, यहाँ रहने लगे। बाद में गौरीशंकर नाम के एक और संत भी इस जगह आये। वे विकलांग थे और उनके केवल चार उंगलियाँ थीं और जो बाद में ‘नेपाली बाबा’ के रूप में प्रसिद्ध हो गये। उन्होंने अपने दम पर पत्थरों को काट कर एक बड़ा मंदिर यहाँ बनाया। यह मंदिर अब सिद्धनाथ शिव मंदिर जोधपुर के पश्चिमी छोर पर अपनी आस्था व प्रसिद्धि के रूप में प्रसिद्ध है ।
सावन के चार सोमवारों पर यहॉं दर्शनार्थियों की अपार भीड़ रहती है व पहाड़ी से तखत सागर झील व जोधपुर के विहंगम परिदृश्य का नजारा दिखाई पड़ता हे जो आपके मन को लुभालेगा ।